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अध्यात्मगीता. राते भेदज्ञान प्रगट्यो त्यारे ? तोके थयो आत्मवेदी कहतां पोताना आत्मानो स्वरूप प्रगट करवो तेहना वेदने विषे सदा काल निरंतर पणे उपयोग जेहनो वर्ते. अने एहवी रीते उपयोग प्रतें केम बयों ? ॥ १९ ॥
__ चालः-- द्रव्ये गुण पर्याय अनंतनी थई परतीत । जाण्यो आत्म कता भोक्ता गइ परभीत ॥ श्रद्धा योगे उपनो भासन सुनये सत्व । साध्यालंबी चेतना वलगी आत्म तत्व ॥२०॥
अर्थ:---एटले द्रव्ये गुण पर्याय अनंत नी थई परतीत. एटले द्रव्य कहतां धर्मास्ति
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