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अध्यात्मगीता.
आत्म स्वरूपने पिण जाणे छे. अने वली ए मुनि केहवा छे के ? कर्ता कहेतां शुभाशुभ रूप विभाव दशाना अकर्ता छै, अने पोतानी ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे लक्ष्मी तेहना कर्ता छे. अने बली ए मुनि केहवा छे के ? भोक्ता कहेतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलना भोग थकी रहित छै, अने पोताना ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे पर्याय तेहना भोगर्ने विष सदा काल निरंतरपणे वर्ते छे. अने वली ए मुनि केहवा छ ? रमता परणति गेह. एटले रमता परिणति गेह कहतां पोतानी स्वपरगति रूप गेह कहेतां जे घर, तेहनें विप सदा काल निरंतर पणे जेणे रमण प्रति करयो छे, पिण पर परणतिमा पेसी रमण प्रत करता नथी. ग्राहक,
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