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अध्यात्मगीता.
परणति गेह ॥ ग्राहक, रक्षक,
व्यापक, धारक धर्मसमूह | दान, लाभ, बल, भोग उपभोगतणो जे व्यूह ॥ ४ ॥
अर्थ:- एटले वली ए मुनि केहवा छे ? के द्रव्य सर्वना भावना जाणग पासगए ह. एटले द्रव्य सर्व कतां धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आदि पट द्रव्यना भावना जाणग कहेतां भिन्न भिन्न प्रकारे करी जाणे छे, अने पासग कहेतां देखे छे. ज्ञाता, कर्ता, भोक्ता, रमता, परणतिगेह. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? तोके ज्ञाता कहतां ज्ञाने करीनें अनेक ज्ञेय पदार्थने जाणे छे, अने पोताना
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