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अध्यात्मगीता.
रक्षक, व्यापक, धारक धर्मसमूह. एटले धारक धर्मसमूह कहेतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप जे धर्म पोतानी आत्म सत्ता विपे रह्यो छे, तेहना ग्राहक कहेतां जेणे ग्रहण प्रति करयो छे. अने बली ए मुनि केहवा छ ? तो के रक्षक कहेता ते धर्मनी रक्षा प्रतै करे छे. अने वली ए सुनी केहवा छे ? के व्यापक कहेता तेह धर्मने विष सदा काल व्यापी रह्या छै. दान, लाभ, बल, भोग, उपभोग तणो जे व्यूह. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? के जेहनें दानादिक पांच लब्धिनो व्यूह कहतां समुदाय प्रतै प्रगव्यो छे. त्यारे (शिप्य कहे छे के) दानादिक पंच लब्धि ते श्यु कहिये ? त्यारे (गुरु कहे.) भो शिष्य !!!
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