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अध्यात्मगीता.
दानअंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो दान प्रगट्यो । १ । अने लाभ अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो लाभ प्रगट्यो । २। अने भोग अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो भोग प्रगट्यो । ३ । अने उपभोग अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो उपभोग प्रगटयो । ४ । अने वार्यअंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो वीर्य प्रगटयो । ५ । त्यारे (शिष्य कहे छे के) दान ते कोने दिये छे ? अने लाभते श्यानो थयो ? अने भोग ते श्यू भोगवे छ ? अने उगभोग ते श्युं कहिये ? अने वीर्य किहां फोरवे छे (त्यारे गुरु कहे) भो शिष्य ! दान पोताना ज्ञानादि अनंत गुणनें विषे दीये छे अने लाभ पोताना स्वरूपनो
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