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अध्यात्मगीता. थयो. अने भोग कहेतां पोताना ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे पर्याय तेहनो समे समे अनंतो भोग भोगवे छे. अने उपभोग ते पोताना गुणनो कहिये. वीर्य पोताना ज्ञानादि अनंत गुणने विपे फोरवे छे. इति सामान्य प्रकारे दानादि पंच लब्धिनो विचार जाणवो ॥ ४॥ एणी रीते श्रीअध्यात्मगीताना प्रकाशकरूप कर्त्तानी स्तुति करी. हवे कर्ता, शिष्य ऊपर कृपा करी साते नये जीवनो स्वरूप प्रति ओलखावे छे:
ढाल:
संग्रहे एक आया वखाण्यो । नैगमे अंशथी जे प्रमाण्यो.॥
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