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अध्यात्मगीता. स्थाननो छेडो फरसीघाती कर्मने विछोड़े कहतां विखरे. त्यारे शिष्य कहे घाती कर्मने केम बिखेरे ? ॥ २७ ॥
चाल:सम्यग् रत्नत्रयी रस राच्यो चेतन राय। ज्ञानक्रिया चक्रे चकचूरो सर्व अपाय ॥ कारक चक्र स्वभावथी साधे पूरण साध्य । कर्ता कारण कार्य एक थया निराबाध्य ॥२८॥ ___ अर्थ:-सम्यग् रत्नत्रयी रस राच्यो चेतनराय. एटले सम्यग् कहतां भली प्रकारे, अने रत्नत्रयी कहतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप
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