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अध्यात्मगीता.
अने नंद कहतां आनंदमयी; अनुभव आराधे, एटले अनुभव कहतां एहवी रीते अनुभव रूपी अमृतनो आराधे कहतां ते जीव सदा काल आस्वादन प्रतें करे. अने एहवी रीते आस्वादन प्रते करे, त्यारे, तीन घनघाती निज कर्म तोड़, एटले तीव्र कहतां आकराअने घनघाती कहतां पोताना आत्मगुणर्ने घातना करणहार एहवा ज्ञानावर्णादि चार कर्म अने निज कर्म तोड़े. एटले निज कहतां पोताना कर्म अने तोड़े कहतां तेहने ध्यान रूप अग्निये बालीने क्षय करे. अने एहवी रीते ध्यान रूप अग्निये बालीने क्षय करे, त्यारे, संधि पड़ि लेहिने ते विछोड़े. एटले सन्धि कहतां सीम मर्यादानो अंत तेहने छेड़ो कहिये. एटले बारमा गुण
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