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११६ अध्यात्मगीता. पुद्गलनी संतति वाकी रही हती तेहने विडारी कहतां चूरी वालीने क्षय प्रत करी. अने एहवी रीते चूरी वालीन क्षय करी त्यारे ॥ ३७॥
चाल:-- सम श्रेणै एक समय पुहता जे लोकांति । अफुसमाण गति निर्मल चेतन भाव महंत ॥ चरम त्रिभाग विहीन प्रमाणे जसु अवगाह । आत्म प्रदेश अरूपा खंडा नंद अवाह ॥ ३८ ॥
अर्थ:--सम श्रेण एक सपये पुहवा
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