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अध्यात्मगीता.
जे लोकांति. एटले समश्रेण कहेता पाधरी श्रेणै; अने एक समय कहतां एक समयने विषे पोहता जे लोकांति एटले पोहता जे लोकांति कहतां च उदराज लोकने अंते अजरामर स्थानके सिद्ध क्षेत्र कहतां जे क्षेत्रने विषे अनंता सिद्ध परमात्मा विराजमान थका वर्ते छे, ते क्षेत्रने विष पोहता एटले शिष्य कहे केम पोहता ? तोके, अफुसमाण गति निर्मल चेतन भाव महंत. एटले अफुसमाण कहतां वीजा प्रदेश अणफरसे एटले जे इहां आकाशरूप क्षेत्रना प्रदेश फरस्या हता तेहीज समश्रेणीना सिहां फरस्या छे. पिण वीजा प्रदेश अणफरसै. अने गति कहता एहवी गतिये वर्तता पोहच्या अने निर्मल
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