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११८ अध्यात्मगीता. कहतां कर्म रूपं मल थकी रहित. अने एहवी रीते कर्म रूप मलथकी रहित थया स्यारे चेतन भाव महंत. एटले चेतन भाव कहतां शुद्ध ज्ञानादि चेतना गुण रूप भावे करीने सहित, अने महंत कहेतां एहवी मोटी शक्तिना धणी जाणवा. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तोके, चर्म विभाग विहीन प्रमाणे जसु अवगाह. एटले चर्भ विभाग कहेतां छेहला शरीरनो त्रीजो भाग,अने विहीन कहतां घटाडीने, अने प्रमाणे कहतांबे भागना शरीर प्रमाणे आत्म प्रदेशनो घनकरी, जसु अवगाह एटले जसु कहतां जेहनी, अने अवगाह कहतां ते प्रमाणे अवगाहना करी, सिद्ध क्षेत्रने विष विराजमान थका वर्ने छे. अने वली सिद्ध केहवा
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