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'अध्यात्मगीता.
छ ? तो के, आत्म प्रदेश अरूपा खंडा नंदा बाह. एटले आत्म प्रदेश अरूपा कहतां आत्मानो स्वरूप असंख्यात प्रदेश रूप अरूपी छे. अने अखंडा कहतां कोईनो खंड्यो खंडाय नहीं, भेद्यो भेदाय नहीं, छेद्यो छेदाय नहीं, सदाकाल शाश्वतो वर्ते छे, अने नंदा कहतां आनंदमयी अने अबाह कहतां ए आनंद प्रगट्यो छे. पिण केहवो छ ? तोके, अबाध्य एटले बाधा रूप पीडाथकी रहित जाणवो.अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? ॥ ३८॥
ढाल:जिहां एक सिद्धात्मा तिहां छे अनंता । अवन्ना अगंधा नहीं फास
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