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अध्यात्मगीता.
मंता॥ आत्म गुण पूर्णतावंत संता। निराबाध अत्यंत सुखा स्वादवंता ॥ ३९ ॥
अर्थ:-जिहां एक सिद्धात्मा तिहां छे अनंता. एटले जिहां एक सिद्धात्मा कहतां जेणे क्षेत्रे एक सिद्ध परमात्मा छ, तेणे क्षेत्रे अनंता सिद्ध परमात्मा भेला मिलीने रह्या छे. पिण ते सिद्ध केहवा छे ? तोके, अवन्ना अगन्धा नहीं फासमंता. एटले अबन्ना कहता पांच वरण थकी सिद्ध रहित छे. अने अगंधा बे गंधथकी पिग रहित छे. अने वली सिद्ध केहवा छे ? तोके, नहीं फासमंता एटले नहीं फासमंता कहतां आठ फरस रूप शरीरथकी
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