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२२८ गुणस्थानकविचार. जीव उपर क्रोध परिणाम लोकोत्तर देवगुरु साधर्मिक उपर क्रोध परिणामते द्रव्यतः तथा सकेंठोरता भाव रुद्र परिणाम ते जो कोई रीतनो अप्रशस्त क्रोध कों होवे कराव्यो होवे करतां अनुमोद्यो होवे ते श्री त्रिभुवनपति निरंजन देवनीसारखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिछामिदुक्कडं. हवे सातमो पापस्थान मान, अहंकार ? रुपनो, धननो,राज्यनो,परिवारनो, वलनो, तपनो, विद्यानो, कुलनो तथा गुणी नहीं ने गुणीनो मान आचार्य उपाध्याय साधुपणानो अभिमान संसारकार्य यशाभिलाषे मान, धर्मकार्ये संघयात्राचैत्य प्रमुखनो कराव्या रखवाल्यानो मान कर्यो हवे, लौकिक बाह्यलोकोत्तर गुणनो गुणीथी, महत्व
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