________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुणस्थानक विचार. २२७ अरिहंतनो चैत्य तथा जिनविय तथा ज्ञाननो कारण पुस्तक नवकारवाली प्रमुखचारित्रनां उपगरण तेहने ममत्वभावे ग्रहे, द्रव्य परिग्रह पुद्गल खंघादि ममत्वभावे ग्रहे, भावपरिग्रह क्रोधादिक अशुद्ध परिणाम परभावस्वामित्वग्राहकत्वादिक परिणति ते परिग्रह राख्यो हवे परद्रव्यनी इच्छा करी हवे, परिग्रह मुख मान्यो हवे, परिग्रह नासते धर्मआचरण करयो हवे ते परिग्रह पापस्थान मने बचने कायाए करो सेव्यो, सेवाव्यो होय सेवतां अनुमोद्यो होवे ते श्रीअरिहंतनी साखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुक्कडं ५ हवे छठो पापस्थानक क्रोधतप्त परिणाम क्षमानो रोधक ते लौकिक भाई पिता प्रमुख कुटुंब उपर तथा अन्य
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only