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११४ अध्यात्मगीता, गुणस्थानने छेहले समे योगनी रोध करवा मांडयो एटले मूक्ष्म क्रियां अप्रतिपाति शुक्ल ध्याननो बीजो पायो ध्यावतो ते जीव चउदमे गुणस्थान चढे. तिहां प्रथम बादरनो मनो योग रोके, पछी बादरनो वचन योग रोके, पछी बादरना काय योग रोके, पछी सूक्ष्म मनो योग रोके, पछी सूक्ष्म वचन योग रोके, पछी सूक्ष्म काय योग राके, एहवी रीते सूक्ष्म बादर रूप योगनो रोध करी थयो ते अयोगी. एटले थयो ते अयोगी कहता ते जीव चउदमे गुणस्थाने अयोगी पद प्रतें पामे. अने एहवी रीते अयोगी पद प्रतें केम पाम्यो ? तोके भाव सेलेसता अचल अभंगी. एटले भाव सेलेसता कहतां भावना
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