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अध्यात्मगीता.
जीवनो स्वरुप कैम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे, व्यवहार नयनें मते उदय भावनें जोगे करी जे गति म जीव वर्ते छे, ते गति में नित्य छे. अने समय समय आउखो घटे छे यातें अनित्य कहिये पिण ते अनित्यपणा में पोते नित्य पणे वतै छ. एटले ए नित्य में अनित्य, अनित्य में नित्य, ए व्यवहार नयनें मतै भरमार्थ जाणवो । १।
हिवै निश्चय नयनें मतै नित्य अनित्य पक्ष करी जीवनो स्वरूप देखाडै छै. एबले निश्चय नयनें मतै जीवना चार गुण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अने वीर्य, ए चार गुण, अने पर्याय में अव्यावाध अमूर्ति अने अणअवगाह, एटले ए चार गुण अने त्रण पर्याय
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