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अध्यात्मगीता.
जीवना नित्य छे. अने एक अगुरु लघु पर्याय जीव ने सर्वे गुणमां हानि वृद्धि रूप उपजवो विणसवो करे छे, माटै अनित्य कहिये. अने ए अगुरु लघु पाय सर्व गुण में हानि वृद्धि रूप उपजवो विणसवो करे छे तेहमां ए ज्ञानादि चार गुण ते नित्य पण वर्ते छे. एटले ए नित्य में अनित्य, अने अनित्य में नित्य पक्षनो विचार निश्चय नयने मते जाणवो ॥ २॥
हिवे व्यवहार नयनें मते एक अनेक पक्षे करी जीवनो स्वरूप देखाड़े छे. एटले व्यवहार नयने मते उदय भावनें जोगे करी जे गति में जीव वर्ते छे, ते गति में एक छ पिण कोई नो बेटो, कोई नो बाप, कोई नो
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