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अध्यात्मगीता.
तो के, रक्षक कहतां पोताना स्वरूप थकी भिन्न कहतां एहवी पुद्गलादि अनित्य वस्तु तेहना अनादिकालना रक्षक हता तिहां थकी मति निवारीने पोताना स्वभाव रक्षक पणे प्रणम्या छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के, व्यापक कहतां ए पर परिणति रूप विभाव दशाने विषे अनादि कालनो व्यापक पणो हतो, तिहां थकी मति निवारीने पोताना स्वभाव व्यापक पणे प्रणम्या छे, अने तन्मयताये लीन. एटले तन्मयताये कहतां तेहने विषे तन्मय रूप एकाग्रता एणे लीन थका वर्ते छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के पूरण आत्म धर्म प्रकाश रसे लयलीन. एटले
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