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१२६ अध्यात्मगीता. पूरण कहतां सम्पूर्ण, अने आत्मधर्म कहतां पोतानो अनन्त गुण रूप आत्मिक धर्म प्रते अने प्रकाश कहतां तेहनो सत्तागतने विषे प्रकाश प्रते प्रगट्यो छे अने रसै लयलीन. एटले रसै कहतां तेहना रसनें विष सदाकाल लयलीनपणे वतै छे एटले हिवे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप चार भांगे करी सिद्धनो स्वरुप ओलखावे छे ॥ ४० ॥
हाल:-- द्रव्यथी एक चेतन अलेशो । क्षेत्रथी जे असंख्य प्रदेशी॥ उत्यात वलो नाश ध्रुवकाल धर्म। शुद्ध उपयोग गुणभाव शर्म ॥४१॥
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