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अध्यात्मगीता.
१२७
अर्थ: द्रव्यथी एक चेतन अलेसी. एटले द्रव्यथकी सिद्धने एक चेतन कहिये. एटले चेतन कहां शुद्ध ज्ञानादि चेतना रूप गुणे करीने सहित माटे चेतन कहिये. अने अलेसी कहतां कृष्णनील कापोतादि छ लेकी सिद्ध रहित छे माटे अलेशी कहिये. क्षेत्रथी जे असंख्य प्रदेशी. एटले क्षेत्र थकी सिद्धने स्वक्षेत्र रूप असंख्यात प्रदेशी कहिये. उत्पात नाश ध्रुव काल धर्म. एटले काल थकी सिडने उत्पात कहतां अभिनव पर्याय ना जाणवा देखवापणानो समय २ उपजवो थातो जाय अने नाश कहतां पूर्व पर्यायना जाणवा - देखवापणानो समय २ व्यय कहतां नाश थातो जाय. अने ध्रुव कहतां सिद्धने
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