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अध्यात्मगीता.
ज्ञानादि अनन्त गुण प्रगट्या छे; ते सदाकाल ध्रुवना ध्रुव पणे शाश्वता वर्ते के. अने धर्म कहता हवी रीते सिद्धने ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप धर्म मराठ्यां ; तेहने विषे सदाकाल पायनो उत्पात व्यय थइ रह्यो छे. अने वली सिद्ध केहवा छे ? तो के, शुद्ध उपयोग गुण भाव शर्म. एटले भावथकी सिद्ध परमात्माने गुण भाव कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण भाव रूप प्रगट्या छे, तेह रूप शर्म कहता जे घर, अने शुद्ध उपयोग कहतां ते धरने विषे सदाकाल निरंतरपणे सिद्ध परमात्मा, शुद्ध कहतां निर्मल उपयोगवंत थका वर्ते छे. एणी रीते द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाषे करी सिद्ध परमात्मानो
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