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१२४ अध्यात्मगीता. जाणे छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ ? तो के, भोग कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण रूप पाय प्रते, अने भोक्ता कहतां तेहना भोगने विषय सदाकाल निरंतर पणे वर्ते छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के, शुद्ध स्वभाव. एटले शुद्ध कहतां निर्मल कर्म रूप उपाधि थकी रहित, अने स्वभाव कहतां एहवो पोतानी स्वभाव प्रते नीपनो छे' अने वली सिद्ध केहवा छे ? तोके, ग्राहक, रक्षक, व्यापक, तन्मयताये लीन. एटले ग्राहक कहतां ए पर समभार रूप विभाव दशानी अनादि कालनो ग्रहणपणो हतो ते निवारीने पोताना स्वरूपनो ग्रहण कों छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ?
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