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आगमसार. कहे ए मृषावाद जेणे छांड्यो ते निश्चय मृषावाद विरमणव्रत कहिये, एटले बीजा अदत्तादानादिक व्रत जो भांजे ( भांगे ) तो तेनो मात्र चारित्र भंग थाय पण ज्ञान दर्शननो भंग न थाय अने जेणे निश्चय मृषावाद विरमणनो भंग करयो तेणे समकित तथा ज्ञान अने चारित्र ए त्रणेनो भंग करचो. तथा आगममां एम कयुं छे जे एक साधुयें चोथो व्रत भंग करयो अने एक साधुयें बीजो मृषावाद व्रत भंग करयो तो जेणे चोथो व्रत भंग करयो ते आलोयण लेइ शुद्ध थाय पण जे सिद्धान्तना अर्थनो मृषा उपदेश आपे ते आलोयण लीधे पण शुद्ध थाय नहीं.
३ अदत्तादान विरमण व्रत कहे छे.
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