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आगमसार,
संवत सत्तर छिहत्तरे, मनशुद्ध फागुण मास । मोटे कोट मरोटमे, वसतां सुख चोमास ॥५॥ सुविहित खरतर गच्छ सुथिर, युगवर जिन चंद
मूर। पुण्य प्रधान प्रधान गुण, पाठक गुण पंडर ॥६॥ तास शिष्य पाठक प्रवर, मुमतिसार गुणवंत । सकल शास्त्र ज्ञायक गुणी, साधुरंग जसवंत ॥७ तास शिष्य पाठक विबुध, जिनमत परमत जाण। भविक कमल प्रतिबोधवा, राजसार गुरुभाण ॥८ ज्ञानधमे पाठक प्रवर, शमदम गुणे अगाह । राजहंस गुरु गुरु शक्ति, सहुजग करे सराह।।९ तास शिष्य आगमरुचि, जैनधर्मको दास । देवचंद आनंदमें, कीनो ग्रंथ प्रकाश ॥१०॥ आगमसारोद्धार एह, प्राकृत संस्कृत रूप । ग्रंथ कियो देवचंदमुनि, ज्ञानामृत रसकूपा॥११॥
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