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आगमसार. ६५ मानस्यो ? ए विचारी ज्यो ज्यो, तथा लख्यु छे जे सूरीआभे जे प्रतिमा पूजी ते राजधानीना मंगलीक माटे पूजा करी तेतो खोटुं बोलो छो, ए पाठ मूत्रमें नथी. सूत्रमें तो एहवो पाठ छे “हीयाए सुहाए खेमाए निस्सेसाए आणुगाभीयत्ताए भविस्सइ निश्रेयस कहेता मोक्षभणी ए अर्थ छे, तथा पच्छा शब्दे जे इहलोकनो अर्थ छे इंम कहे छे ते मूढ छ, ददुर देवताने अधिकार पच्छा शब्दे आवता भवनो अर्थ छे. तथा आचारांगसूत्रे जस्सपूचियिनो तस्सपछायिनो इहां पूर्व शब्दे पूंठलो भव पछा शब्दे आवतो भव लोधो छे. तथा ए भवे समकितनो लाभ ते घणो छे तथा तीर्थकर वांद्याना फलनो पाठ उबवाइमध्ये
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