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अध्यात्मगीता.
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दशाना भोग थकी जीव रहित छे. अने निश्चय नयनें मते निज कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण रूप जे पर्य्याय प्रर्ते प्रगटे तेहनो जीव भोगी छे। अने योगीश्वर एटले योगीश्वर सुप्रसन्न कहतां एहवी निर्मल बुद्धिना धणी योगीश्वर मुनिराज, सुप्रसन्न कहतां भली तरह चित्त जेहनो सदा काल प्रसन्न पणे वर्त्ते छे. अने वली योगीश्वर सुप्रसन्न एटले योगीश्वर सुप्रसन्न कहर्ता शुद्ध निश्चय नये करी ने जोतांतो मन, वचन, काया रूप पुद्गलनो योगथकी जीव रहित छे. अने पोताना ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप जे योग तेहने जोगे करी ने जीव योगीश्वर छे; अने सुप्रसन्न कहतां तेह जोग ने विषे
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