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अध्यात्मगीता.
अने पाप छे तेतो जीवने अशुभ प्रकृति रूप कर्मनो उदय छे. अने ए शुभाशुभ प्रकृति रूप कर्मना पुद्गल जीवने अनादि काल ना लागा छे, ते पर स्वभाव रूप मोक्ष नगरे जातां जीवनें विघ्न नाकरणहार जाणवा. अने एहवी रीते विधना करणहार थया त्यारे; परभावे पर संगति पामे दुष्ट विभाव. एटले परभावे पर संगति कहता ए परस्वभाव रूप विभाग दशा में संगे करीने, पामें दुष्ट विभाग. एटले पामें दुष्ट विभाग कहता एहवी रीते जीव संसार में फिरतां अनेक प्रकारे कर्म विटंबना रूप दुःख विपाक प्रतें भोगवे. ते माटे निज भोगी योगीश्वर सुप्रसन्न. एटले निजभोगी कहतां ए पर स्वभाव रूप विभाव
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