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अध्यात्मगीता.
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छे. अने एहवी रीते मति मते वर्त्ती त्यारे ? || २५ ॥
चाल:
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पुण्य पाप दे पुद्गल दल भासे परभाव | परभावे पर संगति पामें दुष्ट विभाव || ते माटे निजभोगी योगोश्वर सुप्रसन्न । देव नरक तृणमणि सम भासे जेहनें मन्न
॥ २६ ॥
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अर्थ:- पुण्य पाप वे पुद्गल दल भासे परवा एटले पुण्य पाप कहतां पहिले गुणस्थाने मिथ्यात्व भावनो पुण्य के तेतो जीवनं शुभ प्रकृति रूप कर्मनो उदय छे.
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