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अध्यात्मगीता.
हिये. अने एहवीरीते भाव अध्यात्म रूप गुण प्रणभ्यो त्यार, अनुगत प्रवृत्ति एटले अनुगत कहतां एहवा रीते जे पोताना आत्म स्वरूप में प्रवृत्ति कहता रमण ते करे छे. अने एहवी रीते रमण प्रते करे त्यारे तेहथी होय संसार छित्ति. एटले ते जीव संसारनो छेह यहता पार प्रतें पामे त्यारे शिष्य कहे एहनी रीते संसारनो पार पते के पा? :१७ ॥
एह प्रबोधनो कारण तारण सद्गुरु संग। श्रुत उपयोगी चरणानंदी कर गुरु रंग ॥ आत्म तत्त्वालंबी
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