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अध्यात्मगीता.
कौण जग दीन वली कोण जोरे. एटले जगत मे कोई दीन पिण नथी जे तेहने आपे, अने जगतमे कोई जोरावर पिण नथी जो खेंची लेवे. एटले निश्चय नयने मते सर्वे जीव सत्ताये एक रूप सरीखा ज्ञानादि अनंत गुण रूप लक्ष्मीना धणी जाणवा एटले लाली मेरे लालकी, ज्यां देखें त्यां लाल. ( इसमें कौन है कंगाल ?) तोकै दिलकी गांठ खोलत नहीं ताते फिरै कंगाल ॥ २१ ॥
चाल:- . आत्म सर्व समान निधान महा सुख कंद । सिद्धतणा साधर्मी सत्तायै गुण वृंद ॥ जेह स्वजाति
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