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अध्यात्मगीता.
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जे सुख, तेहनें रोग समान करी जाणै एटले एहवी राते इंद्री जनित पुद्गलीक सुखने रोग समान करी क्रेम जाण्यां ? तो के शुद्ध निज सिद्धता धन पिछाण्यो. एटले शुद्ध कहतां जे निर्मल कर्म रूप मलथकी रहित, एहवो पोताना आत्मानो सिद्धि रूप जे धन, तेहने पिछाण्यो कहतां जाण्यो. एटले एहवी रीते पोताना आत्मानो सिद्धि रूप धन पतें ओलख्यो त्यारे आत्म धन न आपे न चोरे. एटले आत्म धन कहतां पोताना आत्मानो ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप जे धन, न आपे न चोरे एटले न आपे asai ए कोईने आयो अपाय नहीं, अने न चोरे कहतां ए कोईना लीधो लेवाय नहीं.
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