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__ अध्यात्मगीता.
चेतना वलगी कहतां त्यां जेहनी चेतना प्रतें लागी. अने एहवी रीते चेतना लागी त्यारे ? ॥ २०॥
ढाल:इंद्र चंद्रादि पद रोग जाण्यो। शुद्ध निज सिद्धता धन पिछाण्यो॥ आत्म धन अन्य आपै न चोरे। कोण जग दीन बली कोण जोरे ॥ २१॥
अर्थ:-इंद्र चंद्रादि पद रोग जाण्यो. एटले इंद्र चंद्रादि कहतां इंद्र चंद्र आदि चक्रवर्ती वासुदेवना, बलदेवना इंद्रीजनित पुद्गलीक
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