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अध्यात्मगीता.
जे कर्म उदय आवे, ते भोगवीने निर्जरा प्रत्ये करे. अने उदीरणा कहतां जीवनी सत्ताये बंध रूप कर्मना पुद्गल लागा छे ते खेंची कहता उदेरी-उदय आणी भोगवीने निर्जरावे. अने एहवी रीते निर्जरावे त्यारे, अनभि सन्धि बंधकता निरस आत्मराय. एटले अनभि कहतां अनुक्रमे, अने सन्धि कहता सीम मर्यादानो अंत, तेहने छेडो कहिये. एटले बारहमां गुणस्थानने छेड़े, अने आत्मराय कहतां चेतन महाराज रूप जे राजा तेहनी सत्ताये बंधक कहतां बंध रूप कर्मना पुद्गल रह्या छे ते निरस कहतां कषाय रूप रसथकी रहित लूखा जाणवा, अने एहवी रीते कषाय रूप रसथकी रहित लूखासपणे
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