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अध्यात्मगीता.
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वर्त्या त्यारे ॥ ॥ ३० ॥
ढाल:
देशपति जब थयो नितरंगी । तदा कुण थायै कुनय चाल संगी ॥ यदा आत्मा आत्म भावै रमाव्यो । तदा बाधक भाव दूरे गमाव्यो ॥ ३१ ॥
अर्थ: - देशपति जब थयो नितरंगी. एटले देशपति कहतां जिम देशनो धणी, अने पति कहतां राजा, जब थयो नितरंगी. एटले जब कहतां जिवारे, अने थयो नितरंगी कहतां जेहनो चित्त नित मार्गने विषै रंगाणो, अने नित मार्गनो चालणहार थयो तदा कुण थाये कुनय चाल संगी. एटले तदा
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