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९६ अध्यात्मगीता. कहतां तिवारे, अने कुनय कहतां ए कडा नयरूप अनित्य मानो चालणहार कुण होय ? एम इहां ए देशपति कहनां असंख्यात प्रदेश रूप जे देश, अने ते दशने विष ज्ञानादि अनंत गुण रूप लक्ष्मी रही छे, तेहनो पति कहतां धणी, एहयो जे चतन महाराजा, जब थयो नित्यरंगी एटले जब कहतां जिवारे, अन थयो नित्यरंगी कहता ए पर स्वभाव रूप अनित्य मागे मूकीने, पोताना स्वरूप मे रमण करवा रूप नित्य मार्ग प्रतें पकड़यो. अने एहवी रीते नित्य मार्ग प्रतें पकडयो, त्यारे, तदा कुण थाये कुनय चाल संगी, एटले तदा कयतां तिवारे अने कुनय कहतां ए कूड़ा (खोटा) नय
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