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अध्यात्मगीता.
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प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वरूप अनुयाई रूप साधन पणे प्रणमात्री, अने एहवी ते स्वरूप अनुयाई रूप साधन पणे प्रणमी, त्यारे, वाधक भाव ग्रहणता भागी जागी नीत एटले वाधक भाव कहतां अनादि कालनो ए पर स्वभाव रूप विभाव दशानि हारे, जीवने वाधक भाव रूप ग्रहणपणो हतो, ते भाग्यो कहां दल्यो. अने एहवी ते वाक भाव टल्यो त्यारे, जागी नीत, एटले जागी नीत कहतां पर ग्रहण रूप अनित्यपणो दल्यो. अने स्वरूप ग्रहण रूप नित्यतापणी प्रगट्यो, त्यारे, उदय उदीरजा ते पण पूर्व निर्जरा काज. एटले उदय कहां स्थिति पाके उदय भावने जोगे करी
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