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अध्यात्मगीता.
स्वभाव भोगीपणे प्रणमावी. २ अने आत्मानी रक्षकत्वा रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी पर पुद्रलादि विभाव दशाना रक्षक पणे प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वभाव रक्षकपणे प्रणमावी. ३ अने आत्मानी व्यापकत्वा रूपजे शक्ति ते अनादि कालनी पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे व्यापी रही हती, तिहां थकी निवारिने पोताना स्वभाव व्यापक पणे प्रणमावी. ४ अने आत्मानी ग्राहकता रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी पर ग्राहकपणे अवली प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वभाव ग्राहक पणे प्रणमावी. ५ एहवी रीते ए पांच शक्ति अनादि कालनी पर अनुयाईपणे अवली
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