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૨૮૨ आगमसार.
निरंजणं निकल अयल, देवअणाइ अणाइ अणंतं ॥ चेयणलख्खण सिद्धसम, परमप्पा सिवसंतं ॥५॥
अर्थ:-कर्म अंजनथी रहित निरंजन छु, कलंक रहित छु, अयल केहतां पोताना स्वरूपथी किवारे चलायमान थाउं नहीं, परमदेव छु. जेनी आदि नथी तथा जेनो अंत नथी चेतना लक्षण छु, सिद्ध समान छ, संतसत्ता मयी छं. जीवादिसदहणं सम्मत्तं, अहिगमो नाणं ॥ तथ्थेव सया रमणं, चरणं एसो हु मुख्ख पहो॥६॥
__ अर्थः-जीवादिक छ द्रव्य जेवा के तेवा सदहवा ते समकित अने छ द्रव्य जेवा
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