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आगमसार.
१८१
हवे जीवस्वरूप ध्यान करवाने गाथा
कहे छे.
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अहमिको खलु सुद्धो, निम्ममओ नाणदंसणसमग्गो || तम्मि ठिओ तच्चित्तो, सव्वे ए ए खयं नेमि ॥ ४ ॥
अर्थ:- ज्ञानी जीव एहनुं ध्यान करे के हुँ एक छं, पर पुद्गलथी न्यारो हुं, निश्चय नयेकरी शुद्ध छु, ज्ञानदर्शन स्वरूप छु, निर्मल छु, ममताथी रहित हुं हुं मारा गुणमां रह्यो छु, चेतनागुण ते माहारी सत्ता छे, हुं मारा आत्म स्वरूपने ध्यावतो सर्व कर्म क्षय करूँ छु.
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