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अध्यात्मगीता.
थयो त्यारे, एह अनादि प्रवर्ते बाधे पर विस्तार एटले एह अनादि कहतां एहवी रीते अनादि कालनी जीवने अवला प्रवर्ती, थई त्यारे वाधै पर विस्तार, एटले वाधै पर विस्तार कहतां जीवने कर्म रूप पर पुद्गलनो विस्तार प्रते वधवा मांड्यो, त्यारे शिष्य कहे कर्मरूप पर पुगलनो विस्तार प्रते केम वधवा मांड्यो ? ॥ १४ ॥
ढाल:
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एम उपयोग वीर्यादि लब्धि | पर भाव रंगी करे कर्म वृद्धि ॥ पर दयादिक यदा सुह विकल्पे । तदा तदा पुण्य कर्म तो बंध कल्पे ॥ १५ ॥
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