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अध्यात्मगीता. ४१ अर्थ:-एटले एम उपयोग वीर्यादि लब्धि कहतां एहवी रीते वीर्यादि पंचलब्धि ने विष जीवनो अवलो उपयोग क्यों, अने एम अवलो उपयोग वो त्यारे पर भाव रंगी करे कर्म वृद्धि. एटले पर भाव रंगी कहतां जीव पर स्वभाव रूप विभाव दशा ने विषे रंगाणो अने एहवी रीते पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे रंगाणो त्यारे करे कर्म वृद्धि कहतां ते जीवे नवा नवा कर्मनी वृद्धि प्रतें करवा मांडी. अने पर दयादिक यदा सुह विकल्पै. एटले यदा कहतां जेवा रे जीवनो पर दयादि शुभ विकल्प थयो. तदा पुण्य कर्म तणो बंध कल्पै. एटले तदा कहतां तिवारे जीव पुण्य रूप कर्मनो बंध प्रतें
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