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आगमसार. १३९ अंतरंग लालच छुटी नथी तो तेहने ते मैथुनना कर्म लागे छे.
५ परिग्रह परिमाणवत कहे छे. परिग्रह धन-धान्य-दास-दासी-चतुष्पद-जमीन-वस्त्र आभरणनो त्याग तेमां साधुने तो सर्वथा परिग्रहनो त्याग छे तथा श्रावकने इच्छा परिमाण छे जेटछी इच्छा होय तेटलो परिग्रह मोकलो राखे. बीजानी विरति करे ए व्यवहारथी कह्यो अने जे भाव कर्म रागद्वेष अज्ञान द्रव्य कर्म ज्ञानावरणीय प्रमुख आठ कर्म अने शरीर इन्द्रियनो परिहार एटले कर्मने जाणी छांडवो ते निश्चयथी परिग्रहनो त्याग एटले परवस्तुनी मूर्छा छांडवी क्षेणे मूर्छा छोडी तेणे परिग्रह छोडयोज
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