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.१४० आगमसार. छ एम जाणवू.
६ दिशिपरिमाण व्रत कहे छे. तिहां तिरछि चार दिशी पांचमी अधो छटी उर्व ए छ दिशिना क्षेत्रनो मानकरी मोकलो राखे ते व्यवहारथी दिशिपरिमाण कहियें अने चारगतिमां भटकवू ते कर्मनुं फल छे एम जाणी तेथी उदासीपणो अने सिद्ध अवस्था (नो) शुं उपादेयपणो ते निश्चय दिशिपरिमाण व्रत कहिये.
७ भोगोपभोगपरिमाण व्रत कहे छे. जे एकवार भोगवq ते भोग अने जे वारंवार भोगव, ते उपभोग तेनो परिमाण करे ते व्यवहार भोगोपभोगत्रत कहिये, अने जे व्यवहारनय कर्मनो कर्ता भोक्ता जीव छे अने
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