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आगमसार.
पुण्यादिकनी वांछा छेतेने निश्चय अदत्तादान
लागे छे.
४ मैथुन विरमणत्रत कहे छे. जे पुरुष परस्त्रीनो परिहार करे तथा जे स्त्री परपुरुषनो परिहार करे. इहां साधुने स्त्रीनो सर्वथा त्याग छे अने गृहस्थाने परणेली स्त्री मोकली छे. परस्त्रीनो पञ्चखाण छे ते व्यवहारथी मैथुननुं विरमण कहियें अने जे विषयना अभिलाषनुं तथा ममता तृष्णानो त्याग, परभाव वर्णादिक परद्रव्यना स्वामित्वादिक तेनो अभोगीपणो आत्मा स्वगुण ज्ञानादिकनो भोगी के अने ए पुलसंध ते अनंता जीवनी एंठ के तेने केम भोगवे ? ए रीते त्याग निश्चयथी मैथुन विरमण कहियें. जेणे बाह्य विषय छांड्यो छे अने
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