________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९४
आगमसार.
लेजो, छंडवा योग्य छोडजो, सद्दहणा शुद्ध राखजो, सद्दहणा ते मोक्षनुं मूल ले ए इन्द्रिय सुख तो आ जीवे अनंतिवार पाम्युं छे. एहवी जाति - जन्म - योनि कोइ रही नथी जे आपणा जीवे नहीं करी होय. ए जीवने संसारमां भमतां अनंतां पुल परावर्तन थयां पण धर्मनी जोगवायीं मली नहीं तो हवे मनुष्यभव, श्रावककुल, निरोग शरीर, पंचेंद्रिय प्रगट, बुद्धि निर्मल, एटला संयोग मल्या वली श्री वीतरागनी वाणीना कहेनारा शुद्ध गुरुनी जोगवाइ पामीने अहो भव्यलोको ! तुमे धर्मने विषे विशेष उद्यम करजो, फरिथी एवी जोगवाइ मिलवी दुर्लभ के माटे प्रमाद करशो नहीं. ए शरीर, धन, कुटुंब, आयुष्य
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only