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अध्यात्मगीता.
एटले एहवी कहतां आगल वखाणी तेहवी, अने शुद्ध कहतां निर्मल, अने सिद्धता कहतां एहवी रीते सिद्ध परमात्मानी सम्पदा प्रते, ते करण ईहा. एटले करण ईहा कहतां एहवी सिद्धि रूप सम्पदा प्रगट करवाना जे मुनिने ईहा ( इच्छा ) प्रते वर्ते ते मुनि केहवा छे ? तो के इंद्रिय सुख कहेतां पंचेन्द्रीयना वीस विषय रूप पुद्गलीक जे सुख, अने निरीहा कहतां तेहनी इहा रूप बंच्छा थकी रहित थका वर्ते छे. अने वली ए मुनि केहवा छे तो के पुद्लीक भावना जे असंगी. एटले पुद्लीक भाव कहतां पोताना स्वरूप थकी भिन्न कहतां जुदो एहवो शुभाशुभ विभाव दशा रूप जे पुद्लीक मात्र, अने जे कहता
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