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अध्यात्मगीता.
भगवान, अने जाणे कहतां एहवी रीते सिद्धनो स्वरूप प्रत्यक्ष पण जाणे देखे; अने गुणनो छन्द कहतां ए सिद्ध परमात्माने अनंत गुण रूप समूह प्रते प्रगट्यो छे, तेहने विषे अनन्तो सुख भोगवे छे ते केवली भगवाननेज गम्य छ; पण छदमस्त मुनीना जाण्यामां न आवे ॥ ४२ ॥
ढाल:एहवी शुद्ध सिद्धता करण ईहा । इंद्रिय सुख थकी जे निरोहा। पुद्गली भावना जे असंगी। ते मुनि शुद्ध परमार्थ रंगी ॥ ४३ ॥ ___ अर्थः-एहवी शुद्ध सिद्धता करण ईहा,
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