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अध्यात्मगीता. १०५ त्यारे. ते परिणितथी प्रगटी तत्विक सहज समृद्ध. एटले ते परिणितथी कहतां एहवी निर्मल शुद्ध आत्मानी प्रणति थकी अने प्रगटी कहतां नीपजी. त्यारे शिष्य कहे-यूं नीपजी ? तोके, तत्विक सहज समृद्ध. एटले तत्विक कहतां तद् र पपणे जेहवी सत्ताये हती तेहवी, अने सहज कहतां ए अकृत्रिम भाव रूप संपदा प्रते, अने सम कहतां सम्पूर्ण अने रिद्ध कहतां पोतानी ज्ञानादि अनंत चतुष्टय रूप लक्ष्मी प्रतें प्रगटे. अने एहवी रीते पोतानी लक्ष्मी प्रतें केम प्रगटे ? तोके, स्व स्वरूप एकत्वे तन्मय गुण पर्याय. एटले स्त्र स्वरूप कहतां पोताना आत्मिक स्वरूपने विर्षे, अने एकत्व कहतां तेहने विषे एकत्व
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