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अध्यात्मगीता.
ग्रहे छे, माटे नवमा दशमा गुणस्थानथी मांडी यावत् तेरमां चौदमा गुणस्थान पर्यंत केवली भगवान पिण संवरभावमे वर्तता महानिरी प्रतें करे छे ८ तेहने भव शरीर आश्रये द्रव्य मोक्ष पद कहिये ॥ ६॥ ॥ ९॥
अने एवंभूत नयने मते सकल कर्म क्षयकरी लोकने अंते विराजमान सादिअनंतमे भागे वर्त्तता एहवा सिद्ध परमात्मा तेहने भाव मोक्ष पद कहिये ॥ ७ ॥ ९ ॥ एणी रीते साते नये करी तत्वनो स्वरूप जाणवो. . हिवे नामादि ४ निक्षेपे करी षट् द्रव्यनो स्वरूप ओलखावे छे. एटले नामजीव कहतां नैगम नयने मते गये काले जीवतो हतो आगामी काले जीवसे अने वर्तमान काळे
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